रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
Rogansheshanpahansi Tushta Rusta Tu Kaman Saklanbhishtan । Tvamashritanam Na Vipannrananam Tvamashrita Hyashraytam Prayanti ॥
देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो । जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ॥
O feminine Power! When you are happy with me, you destroy all my diseases and when you get irritated you destroy all my desires to prosper । People who have been in your refuge, the disaster would not have them. One, who is under your guidance and shelter, is able to save others too ॥
No comments:
Post a Comment